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ईसाई धर्म में आस्था रखने वाली यांग हुईशिन को बचपन से ही एक अच्छा इंसान बनना पसंद था। उसे किसी को नाराज़ करना अच्छा नहीं लगता। वह मानती है कि वह एक अच्छी इंसान है, क्योंकि वह दयालु है और सबके साथ सहमति बनाकर चलती है। लेकिन अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार को स्वीकारने और परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुज़रने के बाद ही, उसमें एक जागृति आती है। उसे अहसास होता है कि वह सचमुच एक अच्छी इंसान नहीं है। बल्कि वह शैतानी फलसफों के अनुसार जीती है, और बेहद ख़ुदगर्ज़, धूर्त "शरीफ इंसान" है। वह दिल में सत्य की खोज करने और ऐसी अच्छी इंसान बनने का संकल्प लेती है जो ईमानदार और सच्चा हो... यांग हुईशिन को ऐसे क्या अनुभव हुए जिनके कारण उसके अंदर ऐसा रूपांतरण हुआ?